दुनिया की सभी माँओं को समर्पित है यह कालम.... "
🔵 संजय चाणक्य
‘‘ मेरे जिन्दगी में एक भी गम न होता❗
अगर तकदीर लिखने का हक मेरी ‘‘ माँ ’’ को होता ‼️ ’’
चेहरे पर झुर्री ,पपडी पडे ओठ, डबडबाई हुई पथराई आखे और तन पर फटे पुराने कपडो में जब किसी बूढी माँ को देखता हू तो दिल द्रवित हो उठता है। सोचता हू गरीबी की मार ने इस बूढी माँ की क्या हालत कर दी है। तपती धूप में नंगें पैर लाठी के सहारे सडको पर जब किसी बूढी मां को भीख मागंते हुए देखता हू तो बरबस यह सोचने पर विवश हो उठता कि भूख से बिलबिलाते अपने कलेजे के टुकडे का पेट की आग बुझाने के लिए माँ क्या क्या नही करती। निश्चत तौर पर वह श्री हरि विष्णु की प्रतिमूर्ति है जो अपने बच्चे को पलने के लिए अपने प्राणो की आहुति देने के लिए भी हर समय, हर पल तत्पर रहती है। फिर सोचता कि जब इस माँ के बच्चे बडे होगें , अपने पैर पर खडे हो जायेगे और दो पैसा कमाने लगेगें तो इस इस बूढी माँ के सारे दुख-दर्द दुर हो जायेगें। लेकिन खून तब खौल उठता जब माँ के रहमो-करम ,त्याग और तपस्या के बाद बच्चे बडे होकर अपने पैर पर खडे हो जाते है और दो पैसा कमाने लगते है तब अपनी दुनिया में खोकर उस माँ को भूल जाते है जिस माँ ने उसे नौ माह अपनी कोख मे रखकर जन्म दिया, अंगुली पकडकर चलना सिखाया, अच्छे - बुरे की पहचान करायी। घृणा होती है समाज के ऐसे लोगो से जो बेजान चीजो से अपने घरो को भरकर घर की शोभा बढाते है और जन्म देने वाली व समाज में पहचान दिलाने वाली माँ को फुटपाथ पर छोड देते है। सच कहू तो ऐसे लोगो को नरक में भी जगह नही मिलना चाहिए। इतिहास साक्षी है जिसने भी बुलन्दियों को छुआ है वह मां के कदमो में सिर झुकाकर व माँ के आर्शीबाद को सिढी बनाकर ही उचाइयों पर पहुचा है।
‘‘ माँ हर पल तुम साथ हो मेरे , मुझको यह एहसास है❗
आज तू बहुत दूर है मुझसे पर दिल के बहुत पास हो ‼️
तुम्हारी यादों की वह अमूल्य धरोहर आज भी मेरे साथ है ❗
जिंदगी की हर जंग को जीतने के लिए सिर पर मेरे आज भी तेरा हाथ है‼️"
यह कैसी विडम्बना है पश्चिमी सभ्यता की कोख से उत्पन्न ’’ वेलेनटाइन.डे’’ पर बाजार में रौनक रहती है और बाजारवादी तमाम तरह के ग्रीटिंग बेचने में मशगूल रहते है। प्रेमी-प्रेमिका भी अपने प्रेम का इजहार करने के लिए उत्साहित और व्याकुल दिखते है, और मीडिया भी इसे विशेष बनाने में लगी रहती लेकिन दुर्भाग्य यह है कि अनमोल संस्कुति को जन्म देने वाली वाली माँ को आर्यो की धरती पर जन्म लेने वाले सनातन के कर्णघार मातृ दिवस के प्रति उतना उत्साहित क्यों नही दिखते? देश के भविष्य कहे जाने वाले आज के नवयुवक कहां जा रहे है ? क्या यही देश के भविष्य है अगर सचमुच यही देश के भविष्य है तो यह हमारे पूर्वजों के लिए र्दुभाग्य और राष्ट्र के लिए अपशगुन है। भाड़ में जाए ऐसे देश के भविष्य जिन्हे अपनी सस्कृति की तनिक भी चिन्ता नही है जिन्हे जन्म देने वाली माँ के बारे में सोचने की फुर्सत नही है।
‘‘ घेर लेने को मुझे जब भी बलाएं आ गईं ❗ढाल बनकर सामने माँ की दुआएं आ गईं‼️
सच कहे तो माँ पर लिखी हुई पक्तियों को पढने वाले की तादात भी गिने-चुने है। ज्यादातर लोगों की पहली पसन्द है फिल्मी रोमांस और सेक्स की किताबे। पत्नी या प्रेमिका की स्वार्थपूर्ण प्रेम लोगों की पसन्द बनी जा रही है। लेकिन माँ की निस्वार्थ प्रेम आज के पीढी को पसन्द नही। उनके दिल में माँ के प्रति न तो आस्था है और न ही संवेदना। क्योकि हमारी पश्चिम के बयार ने हमारी शिक्षा और संस्कृति को अपने आगोश में ले लिया है। नब्बे की दशक के बाद मायानगरी पर नजर दौडाए तो फिल्मों में भी माँ का किरदार रस्म अदायगी भर रह गया है। आज की दौड की फिल्मे प्रेमी-प्रेमिका के ईद-गिर्द धुमती नजर आती है। जरा विचार तो कीजिए......। क्या माँ सिर्फ चाय बनाने के लिए है ? माँ सिर्फ खाना बनाने के लिए है ? क्या माँ आपके कपड़े प्रेस करने के लिए है? आप घूमते रहते हो दुनियाभर में अपने ऐश-ओ-आराम के लिए लेकिन माँ घर में आपके सामान सजोकर रखती है। कभी आपने देखा कि बर्तन मांजते-.मांजते माँ के हाथो में कब ढेला पडकर घाव बन गया , कभी आपने देखा है कि बटन टांकते-टांकते माँ के आँखों में मोतियाबिंद हो गया है अगर आपने देखा भी है तो आपको फृर्सत कहा है डॉक्टर के पास जाने की। दो दिन से माँ को चक्कर आ रहा हैं आपने भी ग्लुकोज पीने की सलाह देकर अपने दायित्वों का इतिश्री कर लिया।क्योंकि आप अपनी पत्नी या प्रेमिका के साथ मनाली घूमने की प्लानिंग जो बना रहे हो आपको क्या मालूम कि आपकी खुशियों के लिए मांगी गई मन्नतों को पूरा करने के लिए माँ पिछले तीन साल से मथुरा ,वृंदावन और काशी विश्वानाथ की दर्शन करने के लिए आपसे कह रही है। हज के लिए ख्वाजा साहिब से मन्नतें मांग रही है लेकिन हर बार आपनेे कह दिया कि अभी ऑफिस में बहुत काम है अभी गर्मी बहुत है या इस साल तंगी है मुन्ने के स्कूल की फीस जमा करनी है।
’’ संगमरमर की तू बात न कर मुझसे !
मैं अगर चाहूँ तो एहसास-ए-मोहब्बत लिख दुं !!
ताज महल भी झुक जाएगा चूमने के लिए !
मै जो एक पत्थर पे माँ लिख दुं !!’’
खैर। एक दिन माँ चली जाती है अपनी सारी इच्छाएं दिल में ही रखकर भगवान के घर और उस दिन छुते हो आप उसके पैर , जबकि वह जिंदा थी तो एक बार भी आपने उसके पैर नहीं छुए। यदि छु लिए होते तो उसकी सारी इच्छाएं पूरी हो जाती। काश आप कभी जीते- जी माँ के पैर छू लेते ,काश ' मदर डे ' पर माँ के पैर छु लेते तो निश्चत तौर पर तुम आसमान पर अपना नाम लिख देते और जब दुनिया से विदा होते तो माँ जन्नत के द्धार पर आपका स्वागत करती। अभी भी कुछ नही बिगडा है। वो कहते है न सुबह का भूला अगर शाम को घर वापस आ जाए तो उसे भूला नही कहते। वैसे तो माँ की पूजा के लिए उन्हे किसी दिन और तारीख में बाधंना उचित नही होगा, बेटे के लिए हर दिन जन्म देने वाली जननी का पूजा का दिन है लेकिन मातृ दिवस एक विशेष दिन है इस लिए अपनी भूल को सुधारिए.... उठिए माँ के पास जाइये , माँ की चरणों में अपना सिर रखकर बोलिए.... ‘‘मा तुझे शत शत प्रणाम’’ ! मेरे इस लेख को पढने के बाद अगर किसी कुपुत्र के मन में माँ के प्रति आस्था जागृति हो जाए तो माँ को समर्पित इस लेख का एक एक शब्द सार्थक हो जाएगा।
'' शर्त लगी थी जब पूरी दुनिया को एक शब्द में लिखने की ❗
लोग पूरी किताब ढूढ रहे थे ❗
और उसने एक ही शब्द में लिख दिया‘‘माँ ’’‼️
!! जय जननी!!
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