🔵मतदाताओं तक पहुंचाने का आसान जरिया बना सोशल मीडिया प्लेटफार्म
🔴 संजय चाणक्य
कुशीनगर। डिजिटल युग मे समय के साथ चुनावी दौर में नेताओं द्वारा अपने प्रचार प्रसार के तौर-तरीके में काफी बदलाव किया गया है। खास बात यह है कि चुनाव के दौरान जनता तक सीधे पहुंचने के लिए अब अलग-अलग पार्टियों के नेता बैनर-पोस्टर और होर्डिंग की तुलना में सोशल मीडिया मंच व डिजिटल प्लेटफॉर्म को अपना हथियार बना रहे हैं। पार्टी कार्यकर्ता अपने चुनावी अभियान कार्यक्रम का सारा दैनिक विवरण अपने सोशल मीडिया साइट पर जहां खूब शेयर कर रहे है वही रैलियों - चुनावी सभाओं के साथ साथ नुक्कड़ सभा आदि से जुड़े हर तस्वीर भी उनके सोशल मीडिया अकाउंट पर अपलोड हो रहा है। सबब यह है कि आधुनिकता के इस दौड मे कम समय में नेता अपनी प्रतिक्रिया और चुनावी प्रचार प्रसार को लोगों तक पहुंचाने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म को हीअपना साधन बना लिए है।
एक वह दौड था जब देश और प्रदेश में चुनाव का बिगुल बजता था तो उत्साह का माहौल खिल उठता था, शहर के चौक-चौराहों से लेकर गांव के खेत-खलिहान चुनावी रंग मे सराबोर हो जाती थी लोग आपस मे चर्चा करते थे अपने क्षेत्र के बडे आदमी कहे जाने वाले लोगों से राय लेते थे, चुनाव मैदान मे ताल ठोकने वाले प्रत्याशी गांव-गांव घर-घर लोगो से मिलकर उन्हें अपना चुनाव चिन्ह बताते थे अपने पक्ष मे वोट करने के लिए अनुरोध करते हुए जाति-धर्म से इतर बड़े-बुजूर्गों का पैर छूकर आशीर्वाद लेते थे। दिलचस्प बात यह है कि उस दौर में जब महिलाएं वोट डालने के लिए घर से निकलती थी तो टोली बनाकर 'चलो रे सखी वोट डाले' ' गीत गाते हुए बुथ पर पहुंचती थी लेकिन डिजिटल युग में अब यह गुजरे जमाने की बात बनकर रह गयी है। नौवीं - दसवी लोकसभा चुनाव के दौर पर नजर दौडायें तो उस समय भी कम संसाधनों के बावजूद चुनाव के दरम्यान सडको से लेकर गली-मुहल्लो मे जीप-कार, रिक्शा - आटो समेत अन्य गाड़ियों मे नेता लाउडस्पीकर के साथ बैनर - पोस्टर और अपने चुनाव चिन्ह का झण्डा लगाकर प्रचार करत थे लेकिन डिजिटल युग के नये दौर में पारम्परिक तौर-तरीके से किये जाने वाले चुनावी प्रचार में काफी कमी आयी है और इसकी जगह सोशल मीडिया प्लेटफार्म का चलन तेजी से बढता जा रहा है।
🔴 बिल्ला-पोस्टर बाटते थेसीमित संसाधन के उस दौर मे जब देश व प्रदेश में चुनाव की शंखनाद होती थी तो प्रत्याशी घर-घर बिल्ला और पोस्टर बटवाते थे। वोट के दिन तक नेता गांव में घूमते थे लोगो का पैर छूकर आशीर्वाद के रूप मे पीठ ठोकवाते थे मतदान के दिन कुछ प्रत्याशी वोट डलवाने के लिए मतदाताओं को बूथ तक ले जाते थे।
🔴 मतदाताओं में उत्साह
85 वर्षीय बिकाऊ अतीत को याद करते हुए कहते है कि उस समय के चुनाव मे वोटिंग के समय उत्सव का माहौल होता था, मानो को त्यौहार है। महिलाए टोली में नाचते-गाते हुए वोट डालने जाती थी, खेत-खलिहान में महफिल जुटती थी वही किस्से कहानियों के बीच चुनावी चर्चा होती थी। खेतों में काम कर रहे किसानों के बीच प्रत्याशी मेड पर बैठकर घंटो बतियाते थे उन्ही के साथ खेत मे कलेवा, दोपहर का खाना भी खा लेते थे। लेकिन अब वह माहौल गुजरे जमाने की बात बनकर रह गयी है। अब समय बदल गया, चुनाव में जाति-धर्म हाबी हो गया, उत्साह कम हो गया और गांव गाव मे तनाव बढ गया। अब नेता और उनके समर्थक एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए प्रचार में खामियां गिना रहे है।
🔴 सोशल मीडिया बना चुनावी अखाड़ाकहना न होगा कि बदलते चुनावी परिवेश में पार्टी कार्यकर्ता, पदाधिकारी और नेताओं द्वारा प्रतिदिन का कार्यक्रम और चुनावी अभियान से जुडी जानकारी अपने फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर यूट्यूब, टेलीग्राम, वाट्सएप जैसे सोशल मीडिया साइट पर शेयर किया जा रहा है। महत्वपूर्ण बात यह है कि उम्मीदवारों के साथ-साथ पार्टी पदाधिकारीयों को कम समय में चुनावी प्रचार प्रसार को जनता तक पहुंचाने का अवसर मिल रहा है।
🔴 खत्म हो रहा है बैनर-पोस्टर का चलन
पहले चुनाव नजदीक आते ही पार्टियों में पोस्टर वार छिड़ जाता था लेकिन लेकिन डिजिटल युग मे नेताओं की जुबानी जंग खासतौर पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर देखी जा रही है. पार्टी विचारधारा के आधार पर एक दूसरे पर टिप्पणी करने से लेकर खींचातानी तक की बातें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पार्टी नेताओं द्वारा लिखी जा रही है। हालांकि निर्वाचन द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की निगरानी रखी जा रही है ताकि आदर्श आचार संहिता पर किसी प्रकार आंच न आये।
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