चर्चा और परिचर्चा से होता है ऊर्जा का संचार - दीदी स्मिता - Yugandhar Times

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Saturday, January 9, 2021

चर्चा और परिचर्चा से होता है ऊर्जा का संचार - दीदी स्मिता

🔴 भारत देश नहीं माँ है हमारी

🔴 युगान्धर टाइम्स न्यूज व्यूरो 
कुशीनगर। चर्चा, परिचर्चा से समाज में नई ऊर्जा का संचार होता है, ऐसे आयोजनों में हिस्सा लेने से सनातन, पुरातन और नवीन परिदृश्य में हमें तुलनात्मक परिणाम समझ में आते है। चर्चा में विचारों का आदान प्रदान होता है। पुरातन समय की यादें, तब की सनातन संस्कृति से युवा वर्ग को परिचित होने का अवसर प्राप्त होता है। हम सनातन संस्कृति के प्रति पूरी श्रद्धा रखते है, लेकिन उसका अनुसरण नही करते है। आज हमारा युवा वर्ग मोबाइल के साथ व्यस्त रहता है, वह आधुनिकता को महत्व देता है। यही कारण है कि हम जब तक अपने घर में होते है, हमारे अंदर संस्कार, संस्कृति और चरित्र अपना छटा बिखेरता है, लेकिन जैसे ही घर से बाहर निकलते है, हमारी मानसिक विचार आधुनिकता के चकाचौध में विलीन हो जाता है। समाज में आपसी क्लेश, दुराचार की घटनाओं के पीछे सबसे बड़ा कारण यहीं है।
उक्त विचार श्रीराम मंदिर ट्रस्ट क्षेत्र श्री अयोध्या जी के अध्यक्ष पूज्य संत श्री नृत्यगोपाल दास जी महाराज की शिष्या साध्वी दीदी स्मिता वत्स ने कुशीनगर में आयोजित पुरातन छात्र परिषद द्वारा आयोजित पुरातन एवं नवीन विषय पर परिचर्चा के दौरान कहीं। उन्होंने भारत माता, सनातन धर्म, संस्कति, संस्कार, चरित्र का ह्रास आधुनिक सभ्यता के प्रचलन के कारण हो रहा। हमें इसपर अंकुश लगाने को खुद से पहल करनी होगी। और इसका सबसे सरल माध्यम पुरातन सम्मेलन ही हो सकता है। ऐसे आयोजनों में बृद्ध एवं युवा दोनों पीढ़ी के लोग अपने परिजनों के साथ उपस्थित होते है, जिसे युवा वर्ग को अपने अभिभावकों के जीवनकाल की घटनाओं से प्रेरणा मिलती है। मैं अपने युवा भाई व बहनों को आमंत्रित करती हूँ कि आप आधुनिक समाज मे आगे बढ़े लेकिन जिसके बदौलत आप यहां तक कि यात्रा किये है उनके जीवनकाल से भी परिचित हो, उनके अच्छे संस्मरण को अपने जीवनकाल में उतरे। सनातन संस्कृति, सनातन शिक्षा, संस्कार और चरित्र को अपनाने के साथ सनातन धर्म के पथ पर बढ़ते हुए रामराज्य के स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करें।इसी क्रम में मैंने  श्रीरामचरितमानस जी का पुस्तक वितरण का कार्य शुरू किया है, प्रभु श्रीराम के चरित्र और मर्यादा ही हमारी मूल सम्पदा है। जिसने भी इसे अपने जीवन में उतारा वह भारत भूमि के लिए महत्वपूर्ण बन जायेगा।


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