🔴 संजय चाणक्य
‘‘ माँ मुझे तुम्हारी याद आती है! तुम्हारी कमी मुझे हर दिन सताती है!! तुम्हारे दूर चले जाने के बाद! तुम्हारी याद अक्सर मुझे रुलाती है!! ’’
27 जून बहुतेरो के लिए महज एक तारीख है। तमाम भाई-बन्धुओ के लिए यह तारीख खुशियों से भरा यादगार दिन है, इतिहास रचने वाला ऐतिहासिक पल है, लेकिन मेरे लिए, मेरे परिवार के लिए, मेरे भाईयों के लिए जून माह कि 27 तारीख जीवन का सबसे मनहूस दिन है। यह तारीख हमारे जीवन का वह काला दिन है जो दुनिया की किसी भी खुशी को पाकर भी इस मनहूसीयत को दूर नही सकती है। यकीन मानिए! यह काला दिन मेरी जिन्दगी के एक कोने मे पसरे हुए अंधेरा को चाहकर भी कभी दूर नही कर सकती। वह इस लिए कि आज ही दिन मेरी जन्मदात्री, मेरी जननी, मेरी माँ हमें छोडकर भगवान के पास चली गई। यही वह मनहूस दिन है जिसकी मनहूसीयत ने मुझे " मैं अनाथ बना दिया "! आज माँ के आँचल से मरहूम हुए पूरे आठ साल गुजर गए। आज माँ की आठवी पुण्यतिथि पर दो शब्द माँ की चरणों मे अर्पित करने के लिए जब कलम उठाया तो खुद को अनपढ़ सा महसूस हुआ। यकीन मानिए! निःशब्द हो गया हु। माँ को अर्पित करने के लिए दो शब्द नही है। माँ सरस्वती की कृपा और माँ जननी के आशीर्वाद से अपने पच्चीस साल की पत्रकारिता मे जब हम पत्रकारिता की ककहरा सीख रहे थे उस समय भी मैं कभी शब्दों के लिए इतना लाचार नहीं हुआ था जितना आज हू। यह बात मैं आत्ममुधता मे नही आत्मशाल्गा मे कह रहा हू। आज माँ पर दो शब्द लिखने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है।
" बिगडे हुए हालातों की तस्वीर बदल देती है! माँ की दुआएं बेटो की तकदीर बदल देती है!! जिसने दी जिन्दगी और चलना सिखाया है! वो माँ मेरी उस भगवान की साया है!!"
माँ मुझे यकीन है तुम मुझे सुन रही होगी... माँ के अर्थों में शब्दों को ढूढना कितना मुश्किल है, यह आज एहसास हुआ। माँ तुम जब पास थी तब भी सूरज यूँ ही अपने नियत स्थान से निकलता था लेकिन डूबता तुम्हारी आँखों में ही था। कितने काम, कितनी आशाएं ,कितनी चिंताएं एक साथ आपकी आँखों मे संजोई दिखलाई पड़ती थी । माँ जब तुम थी तो जिन्दगी खुशहाल थी लेकिन अब एक पसरा हुआ सन्नाटा अन्दर ही अन्दर निगलने के लिए आतुर रहता है। माँ ! तुम थी तो हमारी इच्छाएं -अकांक्षाए ऐसे पुरी हो जाती थी जैसे तुम्हारे हाथों मे जादू की छड़ी हो। जब हम सब के पास कुछ नहीं था सिर्फ तुम थी, तो हमारी इच्छामात्र से पलभर मे वह खुशी हमारी झोली मे आ जाती थी । जब हम तीनो भाई कुछ कमाते नहीं थे तो माँ तुमने कभी हम तीनो भाईयों को पिता की कमी महसूस नहीं होने दिया। मुझे तो पापा का चेहरा भी नहीं याद, सब कहते है मेरे पैदा होने के दो-तीन माह बाद ही पापा हम सबको तुम्हारे भरोसे छोडकर भगवान के पास चले गए। निसंदेह मैं ही मनहूस था कि मेरे जन्म के कुछ माह बाद ही हम भाईयों के सिर से पापा का साया उठ गया। लेकिन तुमने कभी हम सबको पापा की कमी का क्षणभर के लिए भी एहसास नहीं होने दिया। वैसे तो आपकी ममता और दुलार हम तीनो भाईयों पर बराबर न्यौछावर होती रही, लेकिन सबसे छोटा और पेटपोछना होने के नाते आपकी ममता और दुलार मेरी झोली मे सबसे ज्यादा रहा। माँ तुम सुन रही हो न। मुझे यकीन है माँ ! तुम मुझे सुन रही होगी , ठीक वैसे ही जैसे तुम भगवान के पास जाने से पहले हम सबकी सुनती थी......!
" जो माँ को ठुकरा दे उनका विनाश होता है! माँ होती है घर मे तो भगवान का वास होता है!!,
27 जून-2014 की वो मनहूस रात की प्रथम पहर को कैसे भूल सकता हू जब माँ हम सब को छोडकर "श्रीहरि के बैकुण्ठधाम" चली गई।और देखते ही देखते चीख-चीत्कार से पुरा घर मातम मे तब्दील हो गया। भुलाये से भी वह क्षण मेरे मस्तिष्क पटल से नहीं निकलता है जब दाल का पानी से भरा चम्मच आपके होठ के तरफ बढा रहे थे और आपकी ममता और दुलार भरी आंखें एकटक मुझे निहार रही थी। कैसे भूल सकता हू माँ। जाते -जाते आपने अपने इस पेटपोछना पर अपनी टकटकी आंखों से ममता और दुलार की जो वर्षां की उसे इस जन्म मे भूल पाना मुमकिन नही है। यह कैसे भूल सकता हू कि आप अपनी पुरी जिन्दगी संघर्ष कर हम सभी भाईयों की जिन्दगी सँवारने मे गुजार दी। कभी आपने यह एहसास नही होने दिया कि हमारे सिर पर पिता का हाथ नही है , आपने कभी हम भाईयों को यह महसूस नही होने दिया कि हमें किसी चीज की कमी है। गवर्नमेंट स्कूल मे साढे चार सौ रुपये महीने की तनख़्वाह से अपनी नौकरी की शुरुआत करने वाली दुनिया की श्रेष्ठ माँ आपने कभी हम लोगों को गरीबी और लाचारी का एहसास तक नही होने दिया। आपकी संघर्ष और त्याग के सामने राजा विक्रमादित्य का सिंघासन भी तुक्ष्य सा प्रतीत होता है। संसार की सर्वश्रेष्ठ मेरी माँ तुम इस दुनिया के प्रति कितनी निर्लिप्त थी। मैंने तुम्हे अपने लिए बड़े चाव से कभी कुछ ना खरीदते देखा ना पहनते ...जबकि हम लोगों के लिए मंहगे से मंहगा कपडा और सामन खरीदने मे तुमने कभी पलभर का समय नही गवाया। भलीभाँति याद है मुझे ..... हाड कपकपाने वाली ठण्ड हो या चिलचिलाती धूप या फिर मुसलाधार बारीश सुबह चार बजे उठकर नित्य क्रियाओं से निवृत्ति होकर पूजा-पाठ करने के बाद आप जल्दी- जल्दी हम लोगों के लिए खाना बनाकर और खुद सिर्फ चाय पीकर सुबह सात बजे स्कूल भागती थी । मम्मी मुझे याद है प्रिसींपल आपकी घडी के समय से ही स्कूल की प्रार्थना शुरु कराती थी। जब आप दोपहर मे घर आती थी तो चौका- वर्तन घुलने के बाद ही अन्य का निवाला अपने मुंह मे डालती थी। शाम को फिर हम लोगों के इच्छा अनुसार खाना बनाने के बाद हम लोगों को खिलाकर खुद खाती थी और फिर रात मे ही वर्तन चौका धूलकर अपने स्कूल का काम निपटाकर सोती थी। आप कभी अपने भूख की चिंता नही की, आप तो हर समय हम लोगों की चिंता मे डूबी रहती थी आप कभी अपनी खुशी की परवाह नही है आप तो पुरी जिन्दगी हम लोगों की आंखों मे खुशियाँ तलाशती रहती थी। मुझे वह वाक्या भी याद है मम्मी, जब हम खाना खाकर नही जाते थे और आप फोन-पे-फोन करके खाना खाने के लिए मुझे घर बुलाती थी और हम दस मिनट- दस मिनट कहकर दो घण्टे-तीन घण्टे बाद आते थे और आप खुद भूखी रहकर मेरा इंतजार करती थी। मेरे लेट से आने पर आप गुस्सा भी होती थी फिर खाना निकालती थी और हम दोनो साथ खाते थे " आप गुस्से मे कहती थी खाना खाकर कही भी जाया करो,, और हम कहते थे " आप मेरा इंतजार क्यों करती है आप खाना क्यों नही खा लेती"! । मझले भईया भी तो कहते थे क्यों इन्तजार करती है आप उसका , आप क्यों नही खा लेती है बात यही खत्म हो जाती थी। न मेरा लेट-लतीफ का आना बंद होता था और न माँ आपका इन्तजार का सिलसिला खत्म होता था। मुझे तो यह भी याद है जब आपके स्कूल मे कुकिंग की परीक्षा होती थी और स्कूल की बच्चियां तरह तरह के पकवान बनाकर सभी शिक्षिकाओ के आगे परोसती थी और आपके साथ की सभी शिक्षिकाए बडे चाव से चटकारे लेकर खाती थी और आप थोडा सा चखने के बाद उन सभी पकवानो को कागज मे लपेटकर अपने पर्स मे रखकर घर लाती थी हम लोगों के लिए, यह यादें कभी मस्तिष्क से ओझल होता ही नही है माँ। मंत्रोचार सी पवित्र मेरी माँ! मुझे तुम कभी नहीं भूलती ,हर दिन तो याद करता हूँ , हर पल तो आप मेरी परछाईं के साथ चलती हो, धमनियों में गूंजती हो ,तुम्हारी आवाज और बेटा के साथ नाम का उच्चारण आज भी मेरे मन को सुगंधित कर देता है । हम सभी की छोटी उपलब्धियों पर हमें विशिष्ट बना देने वाली ,हमें सर माथे पर रखने वाली तुम्हे कैसे भूल पाउंगा माँ! तुम हमारी ख़ुशी में खुश और दुःख में दुखी हो जाती थी माँ! तुम्हारी दुखों की गठरी तुम्हारे सुखों की गठरी से बड़ी थी। माफ करना हमें, दुख तो बाँट नहीं पाए तुम्हारे हिस्से का सुख भी नहीं दे पाये ..शर्मिन्दा है माँ ...तुम चली गई । दिन, महीने और साल गुजर गये तुम्हारे रखे हुए सामनो को आज भी उलटा-पलटता हु तो तुम्हारी सजीव उपस्थिति साफ महसूस होती है। आज भी....अपनी माँ जैसी कद-काठी -सुघड़ता नए और पुराने का अद्भूत मिश्रण मैंने आज तक किसी दूसरी स्त्री में नहीं देखा ..मान होता है, अभिमान होता है माँ आपकी सादगी भरा जीवन देखकर। अपनों से ज्यादा परायों के लिए हर तरह से तत्पर रहने वाली माँ तुम अब कहाँ मिलोगी, कब मिलोगी.....!
" माँ तुम संवेदना हो, भावना हो,एहसास हो मेरी !माँ तुम मेरे जीवन की बगिया की खुशबू की बास हो!!माँ लोरी हो, गीत हो, प्यारी सी थाप हो मेरी !माँ तुम पूजा की थाली हो मंत्रो की जाप हो!!माँ सृष्टि हो, जगत हो, जननी हो मेरी !माँ तेरे बिना सृष्टि की कल्पना अधूरी है मेरी !!"
संसार की सर्वश्रेष्ठ मेरी माँ तम्हें शत- शत नमन"!
!! जय माँ, जय जननी !!
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